मार्ग में तिंगजपुर में बाज बहादुर की सैरगाह, तीन कोस दूर राजगढ़ जिले के सारंगपुर में रानी रूपमती का स्मारक,लोकश्रुति रूपमती तिंगजपुर की रहवासी
लोकानुश्रुतियों में रानी रूपमती शाजापुर जिले के तिंगजपुर की बेटी, रानी रूपमती का स्मारक, मदाना गाँव
बंधु जी की वृक्षों, लता मंजरियों की उपादेयता बताने वाली बोधगम्य शैली और देहात में समर्पित शिक्षक की भूमिका में रहते आंचलिक खेलों पर किए गए शोध का लाभ लेते हुए हमने मार्ग में उनके सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी और वे बताते रहे, मालवा भारत का चौराहा है। विश्वोत्तम हिमालय से भी पुरातन विंध्याचल पर्वत गिरियों से घिरा यह क्षेत्र उपज का भण्डार है। यह गेहूं चना की खोब माना जाता है। पीपल की पूजा मालवा की संस्कृति का ही हिस्सा है। दशा माता की पूजा पीपल के बिना संभव नहीं है। लोक की यह आस्था है कि अश्वथ वृक्ष में ही उसके पूर्वजों का वास है। वैशाख कृष्ण प्रतिपदा में पीपल को सचेत करने की परंपरा पूरे मालवा में रही है। मालवा के इस हिस्से में रास्ते भर पीपल के अंधाधुंध पेड़ इसीलिए बहुत दिख भी रहे थे। उन्होंने बताया कि मालवा में ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी से पूर्णिमा तक वट वृक्ष को वंश की व्यापकता के लिए पूजा जाता है। कार्तिक शुक्ल नवमी आंवला के वृक्ष की पूजा के लिए नियत है। गुड़ीपड़वा के दिन नीम की पत्ती का भक्षण किया जाता है। खांखरा भी बड़ा पवित्र माना गया है। यज्ञऔर यज्ञोपवीत इत्यादि में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। आम, जामुन, कचनार, महुआ, कबीट, जम्भीर (गोदड़िया नींबू) जैसे वृक्ष गाँव में आज भी बालक बालिकाओं के खेलने के माध्यम बनते हैं। पत्ता सूंघ खेल हो या आंवली पीपली या हो अत्ती- पत्ती या फिर आयलो के पायलो कीनी बाँटें जायलो, इन सब देहाती खेलों में पेड़, पत्ती, शाखाएँ, प्रशाखाएँ, फुनगियाँ कहीं न कहीं विद्यमान रहती हैं। मोबाईल की घुसपैठ के बावजूद भी पकड़म पकड़ाई और छीपम-छई , नदी-पहाड़, लोक में प्रचलित ये खेल आज भी मालवा के गाँव देहातों में बच्चे खेलते दिख जाते हैं। आम्बो छू, इमली छू, कोड़ो छू (कवड़ा), बादाम छू, आंख्या फाड़े खार खाये पाछे देखे मार खाये कहकर खेल-खेल में शरारत करते बच्चे तो उन्होंने अपने स्कूल में भी देखे हैं हम गांव की बालिकाओं को आंगन में लंगड़ी खेलते तो स्वयं भी देख पा रहे थे। सूरज गांव-गांव देहरी-द्वारे अंगन ओसारे किरणें ऐसे उछाल रहा था, मानो विभाजन में किसको कितना दूँ पूछ-पूछ कर छटाक भर पुड़िया में पकड़ा रहा हो। मोटर सलसलई, घनाना, मदाना गांवों की सीमाएं लांघते हुए गतिमान थी।राजमार्ग से हटकर तिंगजपुर में प्रविष्ट होकर हमने लोकस्वीकृत रानी रूपमती के तिंगजपुर के ब्राह्मण परिवार की होने के कथा सूत्र टटोले। कुछ हाथ नहीं आया ,शाजापुर के लोक संस्कृविद् और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जगदीश भावसार ने अपनी पुस्तक मालवाचंल शाजापुर में और अनंतरंग शाजापुर स्मारिका में साहित्यकार देवेन्द्र जोशी से लोकानुश्रुतियों पर आधारित अपनी कृतियों में रानी रूपमती को तिंगजपुर के पं यदुराय ब्राह्मण की बेटी बताया था ।गांववालों से इस संदर्भ में की गई पूछताछ का परिणाम सिफर ही रहा ,लोक की स्वीकृति अवस्वीकृति चिरस्थायी नहीं होती यह तो आप भी मानेंगे । प्रकृति के नियमानुसार परिवर्तनशील रहती है। हमने डॉ. भावसार से सम्पर्क साधकर इस संबंध में उनके विचार जानने चाहे तो उन्होंने बताया कि तिंगजपुर और सारंगपुर के एक शिवमंदिर के सामीप्य उन्होंने रानी रूपमती के महल के ध्वंसावशेष स्वयं देंखे थे । काली सिंध नदी के बीचोंबीच स्थित कपिलेश्वर महादेव में अपने आराध्य के नित्य दर्शन करने वाली रूपवान रूपमती के तिंगजपुर की होने की लोक विश्रुत कथाओं को आधार बनाकर ही उन्होंने यह रहस्योद्घाटन किया था । रानी रूपमति के जन्म के संबंध में विद्वानों में मतभिन्नता है स्पष्टतः रानी रूपमती के पुण्य सलिला नर्मदा की परमोपासिका होने के कारण कतिपय इतिहासकार उनके जन्मस्थान को मालवा के स्थान पर निमाड़ मानते हैं।जो भी हो उनकी मृत्यु सारंगपुर में ही हुई इस पर मनीषियों में मतैक्य है। सारंगपुर शहर से दूर रानी रूपमती की विश्राम स्थली है। हमने बंधु जी के साथ उस स्थली को भी जी भरकर निहारा। स्नेहाकुल रानी रूपमती और बाज बहादुर की प्रेम गर्विता गाथाओं को अत्याधिक प्रतिख्यातित किया जाता रहा। सत्यतः वह एक अनेक कलाओं में निपुण चित्रिणी थी। उनकी प्राणांत स्थली को सामुख्य निहारने के क्रम में हम उनके रचित एक दोहे का अनुस्मरण कर रहे थे। चित्त चंदेरी, मन मालवा, दिया हड़ौती माय, पलंग बिछाऊं रणतभँवर में पोढू माण्डव आय। झांकते हुए आसमान से सूरज विष भरी किरणें बरसा रहा था,अलसाई दुपहरी में थकाहारा समय ठहर सा गया था, हम टहलते हुए बाहर आ गये ,मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा विकसित किये गए इस स्थान पर ट्रकों की अँधाधुंध पार्किंग के कारण पहुँच मार्ग बाधित था जो अड़चन पैदा कर रहा था । सुनेरा में मालवा के सूबेदार अमानत खां और रतनसिंह के बीच हुआ भीषण युद्ध, परमारकाल के सोमेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में गुफा में विराजे हैं आशुतोष भगवान शिव
डॉ. जगदीश भावसार ने अपने शोधान्वेषण में सारंगपुर से तीन कोस दूर तिंगजपुर में 27 मार्च 1561 को बाज बहादुर और अकबर के विश्वस्त आदमखां के मध्य भीषण युद्ध होने का वर्णन किया था । वे लिखते हैं कि बाज बहादुर गोंडवाना आक्रमण में वीरांगना रानी दुर्गावती और गोण्डों से पराजय के उपरांत भोग-विलास में लिप्त जीवन व्यतीत कर रहा था इसीलिए अकबर ने आदमखां के नेतृत्व में बाज बहादुर को पदच्युत करने की मंशा से युद्ध कार्रवाई की थी। बाज बहादुर अपने प्राणों के रक्षार्थ खांखरा खेड़ी (शाजापुर) के वन समूह में छिपते-छिपाते खान देश गमन कर गया था, ऐसा माना जाता है। तिंगजपुर में हमने इस कथा के सूत्रों की पड़ताल करने का प्रयत्न किया परन्तु डॉ. भावसार के परामर्श से शिलालेखों को खोजने में विफलता ही हाथ लगी। सारंगपुर से शाजापुर जाने के क्रम में पुल के नीचे महाकवि कालिदास द्वारा स्मृत कालीसिंध नदी का चौड़ा पाट दिखाई दिया। आगरा-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग की पक्की सड़क से नीचे उतरने पर सुनेरा गाँव आता है। बूमतलई लाल माता के मंदिर के बाद पनवाड़ी के शीतलामाता मंदिर परिसर में रंगारा लोगों के सती स्तम्भ को देखते हुए हम राष्ट्रीय राजमार्ग से दस किलोमीटर दूर सुनेरा गाँव पहुँच गए थे। वर्तमान में धाकड़ समाज बहुल ग्राम के शिवमंदिर चौराहे पर हमें श्री सोमेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन हुए दो तलीय इस मंदिर का वर्तमान में जीर्णोद्धार प्रक्रिया के कारण रूप परिवर्तित हो चुका है। मंदिर में एक वृक्ष की छत्रछाया में हमें कुछ प्राचीन प्रतिमाएं भी दिखीं जिन्हें सिन्दूर आलेपन के कारण पहचान पाना कठिन था। मंदिर के ऊपरी तल पर शिवलिंग और नंदी की प्रतिष्ठा थी। हमसे पहले यहां पधारे पुराविदों ने इस मंदिर के अलंकरण के विवेचन विश्लेषण के पश्चात् तत्कालीन संरचना को परमारकालीन अभिहित किया था। (हेरीटेज ऑफ शाजापुर स्मारिका) मंदिर में सोपान उतरकर पहुंचने पर भूतल स्थित गुव्हर या गुफा में परमारकालीन शिवलिंग और नंदी स्थापित दिखाई दिए। हमने अनुमान लगाया कि शिवलिंग के अवलोकन के बाद ही पुराविद इस निष्कर्ष पर पहुंचे होंगे कि यह मंदिर परमार नरेशों द्वारा निर्मित किया गया था, हमें मंदिर प्रांगण में श्री भंवर सिंह जी धाकड़ मिल गये थे वे मंदिर के महंत शंकर पुरी के देहावसान के कारण आ गए थे। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे हमारा कि जिस समय हम मंदिर में प्रवेश कर रहे थे। लगभग उसी समय मंदिर में वर्षों से साधना कर रहे शंकर पुरी जी ने सदा सदा के लिए आंखे मूंद ली थी। जैसे-जैसे समाचार गांव वालों को मिलता जा रहा था बेसुध बदहवास वह मंदिर की ओर दौड़ा आ रहा था। हमने इतिहासवेत्ता ललित शर्मा जी की पुस्तक में पढ़ा था कि मालवा में औंरगजेब के शासनकाल में अशांति और असुरक्षा का वातावरण था। 17 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मालवा के प्रबंधक जहांदार के कालखण्ड में लगान के बोझ तले दबे और क़र्ज़ में डूबे किसानों की स्थिति भी ठीक नहीं थी। लोगबाग लूटपाट से परेशान थे। ऐसे में रतनसिंह रामपुरा ने शक्ति संचय कर उज्जैन पर अधिकार कर लिया था। श्री रघुवीर सिंह जी सीतामऊ की पुस्तक मालवा में युगांतर तथा वरिष्ठ पुराविद डॉ कैलाश चन्द्र पाण्डे के सुमाध्यम से प्राप्य औंरंगजेब के अखबरात पत्रक को आधार बनाकर ललित जी ने सुनेरा में रतनसिंह और तत्कालीन मालवा के सूबेदार अमानत खां के बीच भीषण युद्ध का उल्लेखन किया है। इतिहास में सुनेरा का युद्ध नाम से चर्चित रहे घटनाक्रम में रतनसिंह पराजित हुए थे।
पनवाड़ी का सती स्तम्भ, सुनेरा का मंदिर, परमारकालीन स्थापत्य खण्डों के साथ गुफा में विराजे सोमेश्वर महादेव
हमने धाकड़ जी से युद्ध से संदर्भित जानकारी चाही तो पता चला कि गाँव में एक दंत कथा प्रचलित है जिसमें बादशाही के जमाने में एक आक्रमणकारी के शीषविहीन होने के उपरांत उसके धड़ के युद्ध करने का प्रसंग आता है। किंवदंती है कि बाद में उसका सिर उकावता में और धड़ पीर उमरिया में गिरा था। उकावता और पीर उमरिया जुड़वां गाँव सुनेरा से 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। बहुत समय तक यह क्षेत्र बेचिराग रहा। यहाँ के राजे रजवाड़े पलायन कर गये। हमने मंदिर समिति के कर्ताधर्ता धाकड़ जी से मंदिर के बारे में भी पड़ताल की तो पता चला कि उन्होंने अपने पूर्वजों से मंदिर के पाण्डवकालीन होने के बारे में सुना है उन्होने बात को आगे बढ़ाया और बताया कि अज्ञातवास में पाण्डवों ने सोमेश्वर महादेव मंदिर में शिवोपासना की थी। मंदिर में आस्थित शिवलिंग के अति प्राचीन स्वरूप में विवर (गुफा) में होने के कारण इस धारणा को बल भी मिलता रहा है। उन्होंने शासकीय और स्थानीय जनसहयोग से मंदिर के हाल ही में हुए जीर्णोद्धार के बारे में भी बताया। हमने भी मंदिर के अवलोकन के पश्चात यह पाया कि द्वि-तलीय इस मंदिर के ऊपरी तल पर स्थापित शिवलिंग नया है जबकि नीचे गुफा (विवर) में संस्थापित शिवलिंग व नंदी अत्यंत प्राचीन हैं। अब तक मंदिर में भीड़ बढ़ गई थी, हम धाकड़ साहब को फिर आने का आश्वासन देकर निकल गये। सुनेरा के आसपास अजमेरी, भिलवडिया, मदाना, निछमा और तिंगजपुर देवड़ा तथा अन्य राजपूत ठिकानेदारों की बसाहट वाले गांव हैं। आगे रिछोड़ा गांव में रामदेव जी का मंदिर आस्थित था। मन विचारण में लगा था। सन् 1730 में मोहम्मद बंगस मालवा का सूबेदार बना। 17 जनवरी 1731 में उसके शाजापुर आने का उल्लेख इतिहास में मिलता है। यह वही समय था जब मराठाओं का प्रभुत्व मालवा में हो चुका था। हमने फूलखेड़ी होते हुए शाजापुर की ओर प्रस्थान किया। सच तो यह है कि इस भूखंड में 38 लाख वर्ष पूर्व हुए ज्वालामुखी विस्फोट से निकले लावे की काली उर्वरा मिट्टी ने इसके वनप्रांतरों को हरीतिमा से ढंक दिया था। इसकी मंजुल सुषमा ही मुगलकालीन आक्रमणकारियों को रिझाती रही थी। इस बीच हमने किसी राहगीर से पूछ लिया भैया ये सड़क कहाँ जाती है? उत्तर मिला सड़क कहीं नहीं जाती, युगों-युगों तक यहीं इसी तरह पड़ी हुई है, निमर्म पगचन्हि लिए न इतिहास बदलती है और न ही भविष्य के संकेत देती है। भला बताइये, आप हमारी जगह होते तो वही करते न जो हमने किया, सर खुजलाया, मौन साधे आगे का रास्ता नाप लिया।
शाजापुर जिले की पुरातात्विक सम्पदा को समेटने का सचित्र, रोचक, संग्रहणीय एवं साहसिक सराहनीय प्रयास। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
आपके लेखनी की कारीगरी हमेशा नये नये आयाम स्थापित करती है! बहुत बहुत धन्यवाद?
अभिमत
लोक संस्कृति के विविध आयामों को रोड मैप के ब्लॉग द्वारा जन जन में प्रसारित करने वालीं श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा जी का ‘शाजापुर मालवा’ पर सचित्र लिखा ब्लॉग अध्ययन किया। पूरे जिले का प्रथमबार, पुरातात्विक, लौकिक, सांस्कृतिक विवरण मनोभावों से संजोया गया है। क्षेत्र की सुन्दर लोक कथाएँ, गीत, धरोहरों के सुरम्य दर्शन के साथ मालवी संस्कृति का विकास पृष्ठ दर पृष्ठ संजीव हो उठा है। जिले की मिट्टी से लेकर प्राचीन मूर्तिकला पर पुरवेत्ता रमण सोलंकी का साक्षात्कार, साहित्यकार बंशीधर बंधु का शुजालपुर की प्राचीनता पर साक्षात्कार, सुन्दरसी के मराठाकालीन प्रशासन का मालवा में वैशिष्ट्य पर सम्मानीय प्रो. एम. आर. नालमे सा. का वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार, शाजापुर की समग्र संस्कृति संस्थापना पर स्वनाम धन्य डॉ. जगदीश भावसार का गंभीर साक्षात्कार ने ब्लॉग की पुष्ठता को सिद्ध किया है। ब्लॉग में श्रृंगार, आभूषण, भजन, पहनावा, दर्शनीय स्थल, प्राकृतिक दृश्यावली एवं प्रसिद्धि की वस्तुओं के प्रभावी प्रदर्शन ने ब्लॉग को श्री युक्त बनाया है। मालवा में इस ब्लॉग से इस क्षेत्र का महत्व स्पष्ट परिभाषित होता है। मुझे विश्वास है दिशा जी ऐसे ही ब्लॉगों से मालवा की संस्कृति का सारस्वत भण्डार भरती रहेंगी।
अति सुन्दर जानकारी.
मालवा अंचल के इतिहास संस्कृति , परंपरा ,लोक उत्सव एवं पर्यावरण संरक्षण की जिज्ञासु श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले के अतीत में बिखरी प्राचीन पूरा महत्व की संपदा के साथ साथ लोक जीवन के विभिन्न आयामों की झांकी प्रस्तुत की है इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए शहर से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की गली चौबारा का अपने बहुआयामी अनुभव से भ्रमण कर क्षेत्र का लौकिक चित्रण प्रस्तुत किया है शाजापुर जिले के इतिहास शिल्प -स्थापत्य ,लोकजीवन रीति रिवाज , वेशभूषा आभूषण ,लोक कला ,चित्रावण , लोकगीत आदि के माध्यम से मालवा के शाजापुर जिले की महत्ता को प्रदर्शित किया है । शाजापुर जिले की समग्र जानकारी से संजोया संवारा मनभावन नया एवं रोचक प्रसंग जनमानस के लिए इतिहास एवं संस्कृति परख सिद्ध होगा
शाजांपुर जिले के इतिहास की जानकारी के पुरोधा श्री राजपुरोहित जी , रमन जी सोलंकी , इतिहासविद ललित जी शर्मा, बंशीधर जी बंधु, प्रोफेसर नामले एवं ग्रामीण जन के विचार एवं साक्षत्कार ने इस सचित्र ब्लॉक को प्रामाणिकता प्रदान कर दी है
शाजापुर जिले की निरंतर प्रवाहित लोक संस्कृति चेतना के इस ब्लॉक के लिए अनेक मंगलकामनाएं.
Remark……………..
Excellent documentation of shajapur covering all aspects of this district. You covered agriculture, forest, religion, folk art and culture. While starting local worship song , interviews of the local and indological experts, pandit Ji, which proves the rout level research. Documentation of the sculptures, architectural remains of the paramaras period. I am happy to know that sawa grain still available in that area.. Sun worship vaishnava, dasavatar images are the unique sculptures to prove the shaving and vaishnava from early to modern times. Prehistoric tools and also chalcilithic habitation proved the establishment from the proto-historic to the medieval time state Archaeology department have the museum to highlight the cultural development. Thank you very much for such valuable information.
दीदी आपकी लेखनी को सलाम करता हूं.
श्रेष्ठ रचना, गंभीर शोधकार्य ?
आपकी लेखनी की जितनी प्रशंसा की जाये अपने आप में वह कम होंगी,बहुत सुन्दर लिखा है, भाषा बहुत उच्चस्तरीय है,हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।
यह वह वृतांत है जिसके द्वारा पाठक पाएगा कि उसके विचारों का क्षितिज अनंत में विस्तारित हो गया है !
चाहे वह किसी भी वर्ण या जाति का क्यों ना हो !
एक अद्वितीय वृतांत एक स्मारकीय कार्य,
एक आनंददाई विनोद एवं प्रेरणात्मक यथार्थता से वर्णित! आपका बहुत बहुत आभार !
आपका लेख मैंने आज पड़ा पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा मैं आपके जितना शब्दों को एक सूत्र में नहीं लापता वाकई आपकी जानकारी और आपका ज्ञान काबिले तारीफ है मैं आपका फोन नहीं उठा सका इसलिए क्षमा चाहता हूं मुझे लेख पढ़कर और अन्य जानकारियां मिली जो मुझे पहले कभी नहीं मिली थी और आशा करता हूं आगे भी आपसे जानकारियां प्राप्त करता रहूं.
प्रखर ब्लाग लेखिका श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले की शस्य श्यामल माटी में रचे बसे नैसर्गिक सौंदर्य से संपृक्त गांवों की पगडंडियों पर साहसिक यात्रा कर समेटा गया नदियों,खेतों,फसलों और वृक्षों का उल्लेख तथा सजीव दृश्य मनमोहक है।
सामाजिक,धार्मिक,आध्यात्मिक और पुरातात्विक महत्व की संपदाओं पर संबंधित विद्वान डॉ रमण सोलंकी जी, डॉ जगदीश भावसार जी ,प्रो. एम.आर. नालमे , श्री राजपुरोहित जी और इतिहासकार श्री ललित शर्मा जी के महत्वपूर्ण साक्षात्कारों से प्रमाणित आपके द्वारा किया गया सचित्र जीवंत उल्लेख अभिभूत कर देता है।
ब्लाग में सहेजें गए भजन,भोपा द्वारा स्तुति गायन,लोक गीत,लोक कथाएं,लोक कलाएं ,लोक नृत्य, स्थापत्य तथा पहनावा,आभूषण एवं श्रृंगार आदि का सजीव चित्रण,शाजापुर जिले की जीवित लोक संस्कृति को रेखांकित करता है।
आशा है आपका यह लेखकीय श्रम लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रेरित करेगा।
आत्मीय बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत विस्तार से सचित्र जानकारी
है । आपकी प्रतिभा और परिश्रम
प्रणाम दीदी ।।
आपकी लेखनी पूर्णत: सराहनीय है। आपने वास्तव में गागर में सागर भरने का उच्चतम कार्य करके वर्तमान और भविष्य में आने वाली पीढ़ी को अपनी ही धरोहर के प्रति इतिहास का परिचय कराया। तथा प्राचीन धरोहरों को अपने लेखनी और चित्रों के माध्यम से एक नया आयाम दिया। मां सरस्वती एवं वसुंधरा देवी की कृपा एवं आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे ऐसी हम कामना करते हैं।
शोध जनक लेख साथ में चित्रों के माध्यम से उसकी पुष्टि। पढकर क ई जानकारी यों से अवगत हुए। भाषा का प्रयोग भी उच्च स्तरीय है। बधाई एवं शुभकामनाएं।
शाजापुर जिले की समग्र जानकारी लिए सचित्र आलेख बहुत बढ़िया लिखा गया है.
शाजापुर जिले का पुरातत्व, आपने बहुत सुंदर एवं महत्वपूर्ण ब्लॉग लिखा है। युगयुगीन इतिहास जो पाषाण युग से बाद तक का उचित वर्णन किया है ।विशेष रूप से पाषाण युग के गोलाश्म। क्योंकि प्रतिमाएं सब जानते हैं,पर्ँतु प्रिहिस्टोरिक जानकारी नहीं मिल पाती हैं। रमण जी ने अच्छे तरिके से प्रतिमाओं का वर्णन किया है।विशेष रूप से विष्णु, सूर्य, पार्वती, ब्रम्हा, इत्यादि का तुलनात्मक वर्णन किया है। आपको बधाई और शुभकामनाएं!
बहुत सारगर्भित ,जानकारीपूर्ण आलेख , photos के साथ सुन्दर प्रस्तुतिकरण बधाई दिशाजी ?
बहुत सारगर्भित आलेख। फोटो और इंटरव्यू के द्वारा आपने इस सफर को बहुत रुचिपूर्ण और हमे जिज्ञासु बना दिया ।बधाई दिशा जी।