लुका-छिपी, आँख-मिचौनी, धूप ले के छैंया, सितौलिया, आसी-पासी, कुक्कर कुक्कर कांकरो, आती-पाती, फुंदी फटाका, लंगड़ी, गुल्ली-डंडा और गुड्डे-गुड़ियों के साथ घर-घर खेलने वाले उल्लसित और उत्फुल्लित लोकमन की समूहात्मक अभिव्यक्ति हमें पिछले दिनों भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय के दस दिवसीय शिविर में माटी के खिलौने बनाने वाले कुशल शिल्पकारों के शिल्प में दिखायी दी। राजस्थान, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश राज्यों के सिद्धस्त शिल्पियों ने मुक्ताकाश तले मुक्त कल्पनाओं से माटी के खेल खिलौनों का अभिनव संसार रच दिया। आंचलिक परिवेश में अपने बचपन की स्मृतियों में लौटकर खेल-खेल में ही आपसदारी सिखाते शिल्पियों में देश के कई प्रांतों और मध्यप्रदेश के …
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निसर्ग विहार : जो मार्ग शनिदशा में सम्राट विक्रमादित्य को चकल्दी लाया, वही महामार्ग सम्राट अशोक को पानगुड़ारिया लाया था
भोपाल से सीहोर जिले की मालीबायाँ वीरपुर सड़क पर निसर्ग की रमणीयता धुइले आकाश को पीछे छोड़ते हुए सबेरे-सबेरे हम अतीत में झाँकने की अकुलाहट लिए भोपाल जिले की परिमा से सटे सीहोर जिले की ग्राम्यता में रमते रमाते बढ़े जा रहे थे,मूर्धन्य कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी की लिखी पंक्तियाँ स्मृतियों में कौंधे जा रही थीं शहरों में आप मोटर दौड़ा सकते हैं, बहुत चाहें तो झूठ-मूठ के मन बहलाने वाला गुलाब गार्डन और निकम्मे लॉन लगा सकते हैं पर रेफ्रीजरेटर में रखे फलों में असल स्वाद कहाँ से ला पाएंगे। सूरज की किरनें गाँव वालों को असीसने लगीं …