कश्मीर के अनंतनाग की भांड पथर चौराहा नाटक शैली

कश्मीर

समाज के बुरे और भले पक्ष को उद्घाटित करने वाली भांड परम्परा में व्यंग्य के अवसर पर चाबुक से सटासट मार खाते पात्र दर्शकों के मन में गहरे उतरते जाते हैं इतना कि प्रेक्षागृह का दर्शक दांतों तले उंगली दबाए बिना नहीं रह पाता। इम्तियाज़ के अनुसार इसे मारने के लिए भी विषेशज्ञता की आवश्यकता होती है। गांजे के छिलके से बनने वाले कुर्रा की मार भले ही हल्के से लगे पर उसकी आवाज बहुत जोर से आती है। लोक कलाओं से लोकानुरंजन करने वाले ये लोग अधिक से अधिक लोककलाकारों की उपस्थिति में प्रदर्शन करते है भोपाल में कलाकारों की सीमित संख्या के निर्धारण के कारण इम्तियाज को लंगूर तथा खरगोश को मंच पर न उतार पाने का दुःख रहा।

हमने देखा शिकारगाह पथर के डेढ़ घंटे की प्रस्तुति में भी 18 रंग भरिया कलाकारों जिसमें स्वयं इम्तियाज, रसूल बगथ, अब्दुल सलाम, फिरदौस अहमद, अब्दुल रशीद बगथ, ताहिर अहमद बगथ, जावदे अहमद बगथ, फैजान अहमद, जावेद अहमद, गौहर अहमद शाह गौहर सम्मिलित थे के सराहनीय अभिनय ने दर्शकों को बांधे रखा। कश्मीरी ढोल पर अब्दुल सलाम, शहनाई पर अब्दुल गनी गुलाम अहमद बगथ और नगाड़े पर अब्दुल रशीद बगथ का योगदान यादगार रहा। शाॅल बनाने वाले, फेरी लगाने वाले, वन विभाग के पेंशनर शादी ब्याह में बैंड बजाने वाले ये रंगभरिये कलाकार भले ही अपने कला कौशल से भोपाल की आबोहवा में कश्मीर के रंग घोल गए हों पर अबतक स्वयं इन रंग जीवियों के हिस्से में धुंधले रंग ही आये हैं सरकार से इन्हे बहुतेरी आशायें हैं। इम्तियाज़ कृत संकल्पित हैं कि चाहे कितने भी व्यवधान आएं और उनका भाण्ड थियेटर ग्रुप कश्मीर की साझी विरासत को सदैव संजो कर रखेगा।

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