मणिपुर की सुमंग लीला में थोइबी और खाम्बा का प्रेमाख्यानक

गुरू रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था आधुनिक भारत की संस्कृति एक विकसित शतदल के समान है। जिसका एक-एक दल उसकी प्रान्तीय भाषा साहित्य और संस्कृति है किसी एक को क्षति पहुँचाने  से कमल की शोभा क्षीण हो जायेगी। यह पंक्तियां पिछले दिनों भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय के प्रेक्षागृह में आयोजित मणिपुर की बिरली लोकनाट्य शैली सुमंग लीला के प्रस्तुतीकरण के दर्शी बनकर स्मर हो आयीं। मणिपुरी रंगकर्मी नीलध्वजा खुमान के निर्देशन में ‘खोइरेंताक’ शीर्षक लिए लोक तत्वों से परिपूर्ण सुमंग लीला का प्रदर्शन मन मुग्ध कर गया। सुमंग लीला थोइबी और खाम्बा के  प्रेमाख्यानक पर आधारित थी। सुमंग लीला में राजा के कनिष्ठ भ्राता चिंगखुबा के सज्जन पुरुष नोंगबान कांगयांबा से मैत्रीपूर्ण संबंध होते हैं। वे अपनी एक मात्र पुत्री का विवाह नोंग्बान से करने का मानस बनाये हुए हैं। प्रेमगर्विता थोइबी उनके प्रस्ताव से असम्मत अपने प्रेमिक खाम्बा से घनिष्टता बढ़ाती है। उसके कृत्य से क्षुब्ध चिंगखुबा अपनी पुत्री को कबो (बर्मा) की ओर निर्वासित कर देते हैं। कुछ समय पश्चात् यह सोचकर कि निर्वासन काल में थोइबी अपने प्रियतम खाम्बा को विस्मृत कर चुकी होगी वे उसे पुनः मानमनुव्वल के बाद घर लिवा लाने के लिए नोंग्बान को भेजते हैं। थोइबी प्रेमोन्मत नोंग्बान को धता बताकर अपने प्रेमानुरागी खाम्बा के घर चली जाती है। नोंग्बान क्रुद्ध होकर राजाधिकारी को सूचित कर इस विषयक विवेचना करने का निवेदन करता है। सत्य की पड़ताल कर रहे राजाधिकारी चिंगखुबा और नोंग्बान की मित्रवत प्रगाढ़ता के चलते हस्तक्षेप करने में असमर्थता व्यक्त कर देते हैं और यह निर्णय ईश्वर के भरोसे छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार की परिपाटी  मणिपुर में चिंगु याथांग येंगनबा कहलाती है जिसमें निर्णय का अधिकार ईश्वरीय सत्ता पर सौंपकर उचित समय की प्रतीक्षा की जाती है,इसी बीच ‘खोइरेंताक’ क्षेत्र में साग-सब्जी संग्रहण करने वाली लड़की व्याघ्र द्वारा मारी जाती है। व्याघ्र को मारने के लिए क्षेत्रवासियों के जनाक्रोश को ध्यान में रखते हुए राजा खाम्बा और नोंग्बान के मध्य असत्य व सत्य की परीक्षा का निर्णय सुनाता है।दोनों को खोइरेंताक क्षेत्र में व्याघ्र से संघर्ष करने के लिए भेजा जाता है अपने प्रयास में व्यग्र नोंग्बान व्याघ्र का आहार बन जाता है जबकि सुमंग लीला का नायक खाम्बा व्याघ्र को परास्त कर देता है इस प्रकार अंत में सत्य की विजय दुंदुभी बजती है और सुखान्त परिणिति लिए सुमंग लीला प्रेक्षकों को सत्यनिष्ठ आचरण का पाठ पढ़ाकर मणिपुर की मेइतेई संस्कृति की अमिट छाप छोड़ने में सार्थक सिद्ध हो जाती है।

भाव प्रधान प्रेमाभिनय का लावण्य हस्त और पद संचालन की गरिमामयी प्रस्तुति , पारंपरिक परिधानों का अद्वितीय प्रदर्शन और लोकधर्मी तत्वों का समुचित समागम इस सुमंग शैली का आकर्षण रहा, जिज्ञासावश हमनें लोक मंगल भाव लिए सुमंग लीला के संदर्भ में मोइरांग निंथोऊ  की भूमिका करने वाले नोरेम जीतेन्द्र कुमार मितेई से संपर्क साधा ,मणिपुर  की प्रसिद्ध लोकप्रिय आंचलिक फिल्मों के संगीत निर्देशक रहे अनुभवी जीतेन्द्र कुमार से भाषायी गतिरोधों के बीच भी हम मणिपुरी सुमंग लीला की नाट्य परिपाटी को समझ पाने  में सफल रहे। उनके अनुसार यह अतिप्राचीन प्रदर्शनकारी कला बिना किसी ताम-झाम के 13गुणा 13 फीट वर्गाकार  मुक्मंताकाशी मंच  पर  परदे की अनुपस्थिति में आयोजित की जाती है। देश के पूर्वोत्तार में ‘जात्रावली’ के रूप में लोक प्रसिद्ध सुमंग लीला में मूलतः सुअंग, सुरूप और सुसज्जित पात्र निमंत्रण पर स्थान-स्थान पर जाकर लोकानुरंजन करते हैं और दक्षिणा (सम्मानराशि) भी प्राप्त करते हैं। प्राचीनकाल से ही लघु  कलेवर लिए कई दृश्यों में विभक्त लोक प्रहसनों में प्रस्तुत सुमंग लीला मूलतः मणिपुरी आवासों के अंग रहे प्रगंणों में धार्मिकता का पुट लिये अस्तित्ववान रही है। उन्होंने हमें बताया कि खाम्बा थोइबी प्रेमकथा पर आधारित लयहरोबा से उद्भूत यह लोक नाट्य मनोरजनार्थ मुक्ताकाशी मंच पर किया जाता है। 16 लोककलाकारों के दल ने हमने देखा एक पत्रक पर रखे फल को मंच के मध्य रखा हुआ था और आद्यांत प्रस्तुतिकरण के समय कलाकार उस देवीस्वरूपणी प्रतीक के आस-पास लोकाभिन्य करते रहे। हमने उनसे इस संदर्भ में भी अपनी उत्सुकता प्रकट की तो उन्होंने बताया कि मंचीय प्रस्तुति से पूर्व देवीस्वरूपा खांगजेंगलैरेम्बी की स्तुति कर प्रस्तुति की सफलता सुनिश्चित की जाती हैं। प्रदर्शन में फल, सुपारी अगरबत्ती आदि पवित्र सामग्री (मंडली पूजा) को लांघना और स्पर्श भी वर्ज्य रहता है। पेना (इकतारा) पुंग (ढोलक सृदश) वाद्ययंत्र बजाते हुए वादक सुमंग लीला का प्रारब्ध करते हैं। संगतकार पंक्तिबद्ध होकर मंच के एक ओर विराजकर ईष्टवंदन करते हैं तत्पश्चात बेइथा के माध्यम से दर्शक दीर्घा में उपस्थ्ति कलाकर्मज्ञों का अभिवादन किया जाता है।

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Comments

  1. राम जूनागढ़ says:

    આપ બહુત સુંદર કાર્ય કર રહે હૈ.લોક સંસ્કૃતિ કે વિધ વિધ મોતી સમાન કલા કો દ્રશ્ય શ્રાવ્ય રુપ મે પિરસકર અનઠા કાર્ય કર રહે હો.
    ધન્યવાદ

  2. Santosh Manipur says:

    Madam Disha Sharma I’m very thankful to you for your article promoting our Manipuri  folk theatre  Shumang Leela.

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