आचार्य नरेन्द्र देव ने कहा था संस्कृति लोक चित्त की खेती है। निःसन्देह जिये हुए जीवन पर निर्भर लोक साहित्य लोकरस की प्रधानता के कारण ही लोक संस्कृति को उर्वरत्व प्रदान करता है। लोकसंस्कृति का यही वैशिष्ट्य हमें भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय के मंच पर अभिनयन श्रृंखला के अन्तर्गत आयोजित मालवा के लोकनाट्य ‘माच’ के प्रभावशाली प्रदर्शन में दिखाई दिया। मध्यप्रदेश के मालवा की चिरप्रचलित लोकनाट्य शैली में मालीपुरा सांस्कृतिक माच मण्डल एवं लोक कल्याण समिति उज्जैन के लोक कलाकारों द्वारा प्रणवीर तेजा जी का मंचन मन को लुभा गया। वीरवर तेजा जी का खेल मालवा संस्कृति का अभिन्न अंग …
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पंजाब की लोकनाट्य नकल चमोटा शैली, लोक नृत्य, और मालवा का कबीर गायन
पंजाब प्रान्त की लोकनाट्य नकल परंपरा चमोटा शैली, नक्कालों का शानदार प्रदर्शन लोकमानस की कल्पनाशीलता पर आश्रित लोकसाहित्य का वैशिष्ट्य ही है कि वह स्वयंप्रसूतता और स्वयंस्फूर्तता होता है जिसमें लोक गीत बादलों की भांति झरते हैं और घांस की तरह उपजते हैं। हाल ही में भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय के प्रेक्षागृह में पंजाब की लोकनाट्य नक़ल परम्परा चमोटा शैली में लोक संस्कृति के मूल्यों से रंजित ‘हीर रांझा’के चमत्कारिक प्रदर्शन को देखने का अवसर मिला। पंजाब के मालवा अंचल की मलवई उपबोली में लोक कलम से लिखे गये लोकप्रेम की निश्छलता लिऐ ‘हीर रांझा’की विशुद्ध प्रेमकथा को ख़ुशी मोहम्मद,सलीम …